भारतीय शास्त्रीय नृत्यों में घुंघरुओं का विशेष महत्व है । नर्तक के पैरों में बंधे ,यह पदाघातों को ताल एवं लयाश्रित करने में मदद करते है । भारतीय संगीत में प्रयोग किये जाने वाले विभिन्न वाद्य यंत्रों के सूचि में भी इसे डाला जा सकता है । घुंघरू एक तरह का घन वाद्य है जो की आघात पर बजते है । घुंघरूं की विशेषता है की यह केवल नृत्य के साथ ही प्रयोग होते हैं । कत्थक नृत्य में घुंघरू अति आवश्यक है । नृत्य के बोलों को सही तरीके से पैरों से निकालने में घुंघरू उपयोगी है । अभिनय दर्पण में घुंघरुओं के चुनाव एवं प्रयोग के बारे में विस्तारित स्पष्टीकरण दी गयी है । एक नर्तक को घुंघरुओं के बारे में कुछ विशेष बातों का ध्यान देना चाहिए:-
घुंघरू गोल आकार की घंटी है जिन्हे पीतल के सांचे में ढालकर बनाया जाता है । इनमे एक छिद्र छोड़ा जाता है जिनमे बजने के लिए लोहे के छोटे क्षेत्र डाले जाते हैं। अभिनय दर्पण के अनुसार घुंघरू कांसे के होने चाहिए पर आजकल पीतल के ज्यादा प्रयोग होते हैं।
घुंघरू न तो बहुत बड़े और न ही बहुत छोटे होने चाहिए।
घुंघरुओं की ध्वनि एक सामान होनी चाहिए। अगर यह एक सामान नहीं है तो यह नृत्य के बोलों की बारीकियों को उचित तरीके से प्रदर्शित नहीं कर पाएंगे।
घुंघरू नीले रंग के डोरी में पिरोकर बनाई जाती है । घुंघरुओं को एक एक अंगुल के दूरी में रखकर गाँठ बांधते रहना चाहिए । इससे यह सर्वश्रेष्ठ बजती हैं ।
प्रत्येक पैर में सौ से ढाई सौ घुंघरू बंधी होनी चाहिए। कत्थक नृत्य शिक्षा प्रारम्भ करने वाले छोटे विद्यार्थिओं के लिए यह संख्या कम कर दी जा सकती है।
घुंघरुओं को एड़ी के पास से बांधना शुरू करते हैं। पैरों में घुंघरुओं की चौड़ाई बहुत ज्यादा भी नहीं होनी चाहिए जिससे की उनके खुलने का डर रहता है ।अतिरिक्त घुंघरू होने से कई बार पैरों के ऊपर के हिस्से के कम्पन्न भी प्रकाशित होते हैं जो की बोल के माधुर्य को कम कर देते हैं ।
घुंघरू हमारे नृत्य का अभिन्न अंग है। इसलिए इनको श्रद्धा पूर्वक प्रयोग करना चाहिए।
कत्थक नृत्य का अभ्यास घुंघरुओं के बिना नहीं करना चाहिए, इससे पैरों का संतुलन बिगड़ सकता है ,और पदाघातों का अभ्यास भी ठीक ढंग से नहीं हो पायेगा।
इस तरह हम देखते हैं की घुंघरू कत्थक नृत्य का एक विशिष्ट अंग है।
भावों के साथं नृत्य को ताल और लय समन्वित करने में घुंघरुओं का महत्वपूर्ण योगदान है ।
कथक नृत्य में घुंघरू नृत्य का मुख्य साधन है, नृत्य की सज्जा है, नृत्य का श्रृंगार है, नृत्य का संगीत है और नृत्य की आत्मा है। घुंघरूओं के जैसे अद्भुत प्रयोग कथक नृत्य में किये जाते हैं