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कला के मंदिर तानसेन संगीत समारोह के मंच पर बीच में ही रोकी गयी बड़ा ख़्याल प्रस्तुति

भारतीय शास्त्रीय संगीत हमारी प्राचीनतम धरोहर है जिसमे कला रंगमंच साक्षात् मंदिर के समान माना जाता है और श्रोता गण भगवान स्वरूप...

Written by Prateeksha Patari · 3 sec read >

भारतीय शास्त्रीय संगीत हमारी प्राचीनतम धरोहर है जिसमे कला रंगमंच साक्षात् मंदिर के समान माना जाता है और श्रोता गण भगवान स्वरूप होते हैं हमे बचपन से ही शिक्षा दी जाती है कि जब कोई कलाकार चाहे वह किसी भी कलाक्षेत्र से हो, रंगमंच पर अपनी कला की प्रस्तुति दे रहा होता है तब बीच मे उठ के चले जाना भी निंदनीय माना जाता है। ऐसा करने से कला और कलाकार दोनों का ही अपमान होता है।

बीते रविवार 27th दिसंबर, 2020 को भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रसिद्ध “तानसेन संगीत समारोह” जो कि मध्य प्रदेश में राज्य सरकार द्वारा आयोजित किया जाता है, वहां शास्त्रीय गायक श्री विवेक कर्महे जी को बीच प्रस्तुति में अपना गायन समाप्त करने को कहा गया, ताकि ‘ज्योतिरादित्य सिंधिया’ जी अपना भाषण दे सके, जिन्हें शायद कही जाने की बहुत जल्दी थी या तो समय पर उपस्थित न हो पाए थे, इसके बाद उन्होंने अपने भाषण में “तानपुरे” को “सितार” बोल दिया।

सुर बहुत ही सूक्ष्म होता है। शास्त्रीय गायन में बड़े ख़्याल में आलाप गाते वक़्त बहुत ही एकाग्रता और ध्यान की ज़रूरत होती है। यह एक ध्यान की अवस्था होती है और इसे बीच में रोका नहीं जाना चाहिए।

Source:- https://www.liveaaryaavart.com/2020/12/blog-post_63.html

Written by Prateeksha Patari
I am a music graduate and food technology student from Delhi University. I Love classical music from the bottom of my heart. Profile

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